नादान सबका बोझ उठाता है ऐसे, सबसे जिम्मेदार सदस्य कुटुम्ब का हो जैसे। नादान सबका बोझ उठाता है ऐसे, सबसे जिम्मेदार सदस्य कुटुम्ब का हो जैसे।
बदल सकता हूँ न समाज को शायद यही अब हमारी नियति बन चुकी है। बदल सकता हूँ न समाज को शायद यही अब हमारी नियति बन चुकी है।
जिसे कहते थे अब तक वो देखो पहाड़ है, उस पहाड़ का आज भगवान बनाया। जिसे कहते थे अब तक वो देखो पहाड़ है, उस पहाड़ का आज भगवान बनाया।
तुम्हारी जरूरत बस चुनावों तक ही "सीमित" है। तुम्हारी जरूरत बस चुनावों तक ही "सीमित" है।
और कोलाहल ? और कोलाहल ?
और फिर... और फिर...